मैं गोलोक का वासी कृष्ण
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ,
इस सृस्टि का निर्माता हूँ I
विशाल ग्रह नक्षत्र और तारे,
मैं सबको धारण करता हूँ ll १ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
मै ही सूर्य का तेज प्रबल ,
और मैं ही चंद्र की शीतलता l
मेरी शक्ति से शक्ति पाकर ,
धरती का करते वो सञ्चालन ll २ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
मैं गुणातीत मैं अविनाशी ,
मैं अखंड ब्रह्माण्ड का हूँ आधार |
चर अचर सब मेरी प्रकृति ,
मैं ही उनका अस्तित्व आधार || ३ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
वेदों का निर्माता हूँ मैं,
वेदों का ज्ञाता भी मैं |
वेदों का सार भी मैं ,
और संकलनकर्ता व्यास भी मैं || ४ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
मैं प्राणी में प्राणवायु ,
मैं हूँ उदर की जठराग्नि |
हर एक की प्रतिभा का स्रोत भी मैं ,
मैं ही प्राणी में बुद्धिमानी || ५ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
हर प्राणी के हिय में वास है जिसका ,
वो चतुर्भुज विष्णु रूप भी मैं |
सन्यासी के जीवन का ,
परम सत्य उद्देश्य भी मैं || ६ ||
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
हर एक कारण का कारण मैं ,
हर एक कर्ता का कर्म भी मैं |
ध्यान मग्न है जो ब्रह्मा ज्योति पे ,
उस ब्रह्मा ज्योति का स्रोत भी मैं || ७ ||
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||
व्यक्त अव्यक्त सब प्रकट मुझी से,
और मुझमे ही जा मिलते हैं |
द्वन्द मुक्त ज्ञानी वैरागी हैं जो ,
यह परम गुह्य ज्ञान समझते हैं || ८ ll
मैं गोलोक का वासी कृष्ण ||