मैं गुनहगार
मैं बन गया गुनहगार,
तेरे साथ रहकर ।
बिन पानी के मछली तड़पे,
मेरी जिंदगी हो गई तबाह।
तान सुनाई दी एक मंजिल से ,
पर मंजिल में मुकाम नहीं।
जीने की तमन्ना थी ,
हर पर बताऊं तेरे संग दिन
कैसे रहूं तेरे बिन।
जिगर का टुकड़ा दिया तुझे
फिर भी समझ नहीं पाई मुझे ।
***********अंशु कवि*************