मैं गिर जाती हूँ
बार बार मैं गिर जाती हूँ
फिर उठ कर मैं चल देती हूँ
कर्मशील है मेरा जीवन
कर्तव्यनिष्ठ मैं बन जाती हूँ
अन्तहीन राहों पर चलना
अंत नहीं जीवन का कोई
बार बार मैं गिर जाती हूँ
फिर उठकर मैं चल देती हूँ
अनन्त रहस्य हैं अंतरिक्ष में
गूड रहस्यों में लगी हुई हूँ
संसार बना उत्तम पाठशाला
मैं विधार्थी बनी हुई हूँ
बार बार मैं गिर जाती हूँ
फिर उठकर मैं चल देती हूँ
सीख कहां पाती हूँ कुछ भी
क्यूँ छल कपट में लगी हुई हूँ
तेरा मेरी करना दूनिया में
भगवान् को क्यों भूल गयी हूँ
बार बार मैं गिर जाती हूँ
फिर उठकर मैं चल देती हूँ
सुख मैं ही सबको भूली
दुख में खुद को पाया अकेला
ऊपर वाले तेरे खेल निराले
मैंने खुद को पाया खिलौना
बार बार मैं गिर जाती हूँ
फिर उठ कर मैं चल देती हूँ