मैं गाँव आ गया हूँ
576• मैं गाँव आ गया हूँ
सड़कों का धुआं और भोंपुओं की पों-पों छोड़
मैं फिर वापस गाँव आ गया हूँ
अनचाही दिनचर्या से मुक्त हो गया हूँ
जी,मैं रिटायर हो गया हूँ ।
वापस अपने गाँव आ गया हूँ
जहाँ उगता है सूरज, सुबह-सवेरे, पेड़ों की फुनगी पर
दिन में देवदूत भ्रमण करता है
रात में परियां उतर आती हैं
बिना शोर किए सबको सुलाकर नींद मीठी
वापस चली जाती हैं,
वहीं मैं अपने गाँव आ गया हूँ
बेशक मैं रिटायर हो गया हूँ।
आबादी की जद्दोजहद में चाहे
बागों में कुछ कमी तो हुई है
कोयल पर कूकती अब भी यहाँ है
गौरैये और बुलबुल गाते हैं अब भी
उड़ते हैं कौवे, बैठते मुंडेर पर
बुलाते ही रहते हैं मेहमान जब-तब
मैं भी अब गाँव आ गया हूँ
जी,मैं रिटायर हो गया हूँ ।
जुगनू हैं रात में उड़ते हैं तारे बन
फुदकते हैं वैसे ही अब भी जहाँ-तहाँ
बीच में पगडंडी मेंड़ो पर लेटी
झूमती है हरियाली पहले के जैसे ही
जस का तस , काफी कुछ अब भी है
इसीलिए मैं गाँव आ गया हूँ,
हाँ, अब मैं रिटायर हो गयाहूँ ।
शहर में रईसी चाहे हो जितनी
गाँव की गरीबी अब भी भली है
पंचायत भवन, कृषि केंद्र है, गोदाम है
अस्पताल, बिजली, सड़क, स्कूल सब है
सबसे तो बढकर है मेलजोल गाँवों का
लड़ते हैं, लड़कर फिर मिल जाते हैं
मिलकर ही त्यौहार सब मनाते हैं
कोरोना आया, आकर घबराया
आजादी गाँवों की वैसे ही अब भी है इक-दूजे के हाल पूछते हैं
गाँव तो शहर से अब भी बेहतर हैं
मैं अब अपने गाँव लौट आया हूँ
रिटायर हूँ बेशक, थका मैं नहीं हूँ ।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,18/07/2021•