मैं खुश हूँ बिन कार
थोड़े पैसे हुए पास तब,
सोचा ले लूं ब्रेज़ा।
कार हो जाये अपने घर भी,
ठंडा हो जाये भेजा।
लेकिन पत्नी प्लाट ले लिया,
चुक गया सारा पैसा।
कार योजना विफल हो गयी,
था जैसे रहा वैसा।
पत्नी है प्रधान भवन की,
जो कहती वही चंगा।
प्लाट खरीदे,कार खरीदे
क्यों लूँ उससे पंगा।
अपने बैंक का सारा रुपया,
दे दिया मुझे बिन ब्याज,
प्लाट का दाम बढ़ेगा दिन दिन,
हाथ भले तंग आज।
सोच समझ कर निर्णय लेती,
करती बात साकार।
उसकी हाँ में मेरी हाँ है,
मैं खुश हूँ बिन कार।
सतीश सृजन, लखनऊ.