मैं क्या खाक लिखती हूँ ??
मैं क्या खाक लिखती हूँ ??
कलम खुद चल जाती है ..
अंदर की तकलीफ़ बयाँ होकर
नई कविताएँ अपने आप बन जाती है l
कलम न पकड़ लूँ जब तक
शब्दों के प्याले खली रहते हैं l
कागज़ तो भर जाते हैं मगर…
मेरी सोच पर टेल पड़े रहते है l
जादू कहो या चमत्कार कोई
की घंटों बैठी रहती हूँ l
कुछ सूझता नहीं
और कलम पकडे बिना कुछ सूझता नहीं l
मैं क्या खाक लिखती हूँ …
कलम खुद चल जाती है …
सारी विवशता मेरी
कागज़ पर उमड़ जाती है l
कलम रख देती हूँ फिर कही,
और इतने में ही नई कविता बुन जाती है l
मुस्कान यादव
आयु – 16 साल