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30 May 2024 · 1 min read

मैं क्या खाक लिखती हूँ ??

मैं क्या खाक लिखती हूँ ??

कलम खुद चल जाती है ..
अंदर की तकलीफ़ बयाँ होकर
नई कविताएँ अपने आप बन जाती है l

कलम न पकड़ लूँ जब तक
शब्दों के प्याले खली रहते हैं l
कागज़ तो भर जाते हैं मगर…
मेरी सोच पर टेल पड़े रहते है l

जादू कहो या चमत्कार कोई
की घंटों बैठी रहती हूँ l
कुछ सूझता नहीं
और कलम पकडे बिना कुछ सूझता नहीं l

मैं क्या खाक लिखती हूँ …
कलम खुद चल जाती है …

सारी विवशता मेरी
कागज़ पर उमड़ जाती है l
कलम रख देती हूँ फिर कही,
और इतने में ही नई कविता बुन जाती है l

मुस्कान यादव
आयु – 16 साल

35 Views
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