(मैं क्या करूँ
बेसबब मुस्कुराए तो मैं क्या करूँ।
हुस्न मुझ पर लुटाए तो मैं क्या करूँ।
मैने रोपी तो कलियाँ वफ़ाओं की थीं,
ख़ार ही उग जो आए तो मैं क्या करूँ।
राहे उल्फ़त सितारों ने रौशन किया,
चाँद गर रूठ जाए तो मैं क्या करूँ।
ले गया जो समन्दर यहाँ से कई,
अब वो सहरा बताए तो मैं क्या करूँ।
हर खुशी मैने अपनी उसे सौंप दी,
अब सम्हाली न जाए तो मैं क्या करूँ।
गीत लिक्खा तो था मैने उसके लिए,
हर कोई गुनगुनाए तो मैं क्या करूँ।
मुन्हसिर जिसकी नज़रों पे है ज़िन्दगी,
वो ही नज़रें चुराए तो मैं क्या करूँ।
हैं बुलाती मुझे हुस्न की वादियाँ,
अब कदम डगमगाए तो मैं क्या करूँ।
की थी कोशिश बचाने की हरदम उसे,
ज़िन्दगी रूठ जाए तो मैं क्या करूँ।
कोशिशें मेरी नाकाम होती रहीं,
वो हक़ीकत छुपाए तो मैं क्या करूँ।
जिसकी खातिर ज़माने का दुश्मन बना,
वो ही आँखें दिखाए तो मैं क्या करूँ।
हो मनाने की उम्मीद जिससे ‘मिलन’,
गर वही रूठ जाए तो मैं क्या करूँ.
——-मिलन.
बेसबब-बिना कारण
ख़ार-काँटे
राहे उल्फ़त-प्रेम डगर(रास्ता)
सहरा-बियाबान,जंगल
मुन्हसिर-निर्भर
हक़ीकत-सच्चाई