मैं कौन
मैं खुली किताब हूँ,
या बन्द लिफाफा,
जिसका जैसा स्नेह,
उसने उतना आँका,
परख मिट्टी की —
सोने के सौदागर
क्या जाने—-
खुदा के बन्दों को,
कभी नहीं करना पडा फाँका,
अच्छे बुरे सभी तरह के
हादसों से गुजरा है,
ज़मीर मेरा अब भी ज़िन्दा है,
बदल चुका है जिन्दगी का ख़ाका,
कोई मेरी बात सुने,
या अनसुना कर दे,
बंद खिड़की से
मैने पलटकर नहीं झाँका|