मैं कौन हूंँ
🙏मंच को नमन🙏
विषय—*मैं कौन हूंँ*
शीर्षक–अनबुझी पहेली
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मैं हूँ जगत जननी,
मैं ही शील अवनी
मैं बेटी और बहन,
मैं तो स्नेही गहन ।
मैं प्रियतमा भार्या,
मैं अनुगामी आर्या।
मैं प्रेयसी मैं जोगन,
मैं भोग्या मैं भोगन।
मैं छाया मैं धूप सी,
मैं कुरूप मैं रूपसी।
मैं ही सिंहासन ताज ,
मैं श्रेष्ठ मैं तुच्छ काज।
मैं वस्तु मैं ही बाजार,
मैं ही तो हूँ खरीददार ।
मैं हूँ अनन्य नारी शक्ति,
मैं प्रभु चरणों की भक्ति ।
मैं ही पूजा में अर्चन
मैं सीख मैं प्रवचन ।
मैं विचार चिन्तन,
मैं भावों का मंथन।
मैं गहरी निराशा,
मैं मन की आशा।
मैं पतझड़ बसन्त,
मैं आदि न अन्त ।
मैं कहीं पानी बूंद ,
मैं ही वृहद समुद्र।
मैं धारा नदिया की,
मैं बहती सदियों से।
मैं कोमल साकार,
मैं तरुवर आधार।
मैं फूल हर पत्ता हूँ,
मैं कण कण सत्ता हूँ।
मैं मन भावन सौरभ,
मैं जीवन का गौरव।
मैं धरा और धरणी,
मैं कर्म और करणी।
मैं मन प्रीत का साया,
मैं जग नश्वर माया।
मैं नभ घनघोर घटा
मैं दृढ़ बरगद जटा।
मै दारुण यामिनी,
मैं प्रचंड दामिनी ।
मैं शीतल हवा भी,
मैं क्रोधित आंधी भी।
मैं खुशी का फव्वारा,
मैं हीआंसू की धारा।
मैं मन की शान्ति भी,
मैं सुखद अनुभूति भी।
मैं रंग रूप सजाई हूँ,
मैं हर रूप समाई हूँ।
मैं भिन्न नाम काम हूँ,
मैं सब में विद्यमान हूँ।
मैं सूक्ष्म मैं गौण हूँ।
मैं आखिर कौन हूँ?
मैं सबमें सबकी हूँ,
मैं सखी सहेली हूँ।
मैं संगत मैंअकेली हूँ,
मैं इसीलिये अब तक,
अनबुझी पहेली हूँ ॥
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शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश🙏