“मैं” के रंगों में रंगे होते हैं, आत्मा के ये परिधान।
जमीं हक़ीक़त की और ख़्वाबों सा ऊँचा ये आसमान,
एक दूजे से टकराकर, जो होते हैं अक्सर परेशान।
एक तरफ़ आंसुओं से गढ़ी जाती है, जीवन की हर दास्तान,
तो दूसरी ओर उम्मीदों को हर पल मिलती, हौंसलों की नयी उड़ान।
कभी लहरों को चीरती नाव, देती है निर्भीकता का प्रमाण,
तो कहीं सागर की गहराइयों में डूब जाते हैं, हर पल के अरमान।
जिन पहाड़ों को होता है, अपनी कठोरता पर अभिमान,
उनके हृदय भी पसीझ कर करते हैं, निर्मल नदियों का निर्माण।
वो सूरज जिसके आवरण को कहते हैं, सब महान,
अपनी हीं तपिश में जलने का मिला होता है, उसे फ़रमान।
रिक्तता अतीत की छोड़ जाती है, व्यक्तित्व पर गहरे निशान,
और भविष्य में साथ चलती है, उन परछाइयों की थकान।
आशाओं की बुनियाद पर सजाते हैं हम, अपने मकान,
पर खुशियों की ढहती दीवारों को बचाना, कहाँ होता है इतना आसान।
कभी तो नियति के चक्र छीन लेती है, हमसे हमारी पहचान,
और कभी रेत पर लिखी हमारी सदाओं से गूँजता, ये खूबसूरत जहान।
“मैं” के रंगों में रंगे होते हैं, आत्मा के ये क्षणभंगुर परिधान,
पर भेद भ्रम का टूटता है, यूँ कि रौशन होता है हर सूना मशान।