मैं कुछ दिन घर से दूर क्या गई , 😠
मैं कुछ दिन घर से दूर क्या गई , 😠
इंसान तो छोड़ो 🤔घर का सामान भी मुझसे रुसवा हो गया।
कुर्सी पर बैठी तो वह मेरी याद में एक टांग तोड़ चुकी थी🙃 और पर्दों पर लगी गठान स्वतंत्रता की भीख😢 मांग रही थी
किचन का सामान भी मुझसे आंखमिचोली👻 खेल रहा था पत्ति के डिब्बे में शक्कर और शक्कर के डिब्बे में नमक दिख रहा था😬
चिमटा जो कभी मेरे इशारों पर चलता था वही आज मुझे पराया सा जान पड़ता है 🧐
जिस बेलन से मेरी पुरानी पहचान थी अब वह हाथों से फिसलता है🧐
बड़ी हैरान हूं मैं इस बात से की दूर जाने से क्या इतना अंतर पड़ता है 😞
इंसान तक तो ठीक था घर का सामान भी रुसवा सा जान पड़ता है😟