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15 Dec 2020 · 1 min read

मैं किसान हूँ

मैं किसान हूँ, वही अभागा…

मैं किसान हूँ, वही अभागा
जो ठोकर खा-खा ना जागा…

रहा अभावों में बस जीता
घावों को छिप-छिपकर सीता…

किया रात-दिन भू की पूजा
खाकर घुघिरी, चटनी, भूजा…

मडई, मेड़, बगल तरु सोया
उत्साहित धरती को बोया….

बचपन, यौवन और बुढ़ापा
धूप जला, ठण्डक में कांपा…

बहा बदन से, रक्त पसीना
डूबा रहा कर्ज़ में सीना…

नींद नहीं खटिया पर आई
संकट से हर- रोज लड़ाई …..

कभी नहीं हक अपना पाया
यद्यपि हमने फ़र्ज निभाया …

भरते रहे पेट मिल सबका
बने रहे हम निचला तबका…..

ठगकर सबने मन बहलाया
बीच सड़क पानी नहलाया…

डंडा मारा, कपड़े फाड़े
सपनों को कूड़े में गाड़े….

संसाधन का दाम बढ़ाया
पूंजीपति को गले लगाया…

लागत बढ़ी खेत में ज्यादा
भूल गये नेता जी वादा….

बाजारों ने लूट मचाया
सरकारों ने कहाँ बचाया…

जब दुख में आवाज लगाई
तुमको दी वह नहीं सुनाई….

क्या से क्या आरोप लगाया
अपने दर से दूर भगाया…..

फिर आया हूँ लेकर आशा
फेंक रहे हो फिर से पाशा….

भाग्य लिखा है यद्यपि रोना
लेकिन तय है अब कुछ होना…..

मैं, किसान मिट्टी से ममता
नहीं हमारी तुमसे समता…

लेकिन साहब मत भरमाओ
कुछ शरमाओ, कुछ शरमाओ…

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
(बस्ती उ. प्र.)

Language: Hindi
488 Views
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