मैं कवि नहीं
मैं कवि नहीं,लेखक नहीं,
दिल की आवाजें लिखता हूं।
देख हालत वक्त की,
अश्रुनीर से भिंगता हू।।
कभी हास्य कभी करुण
कभी क्रोधाग्नि में जलता हूं।
रौद्र रस में बहकर
भयानक रूप दिखता हूं।।
कवि नहीं,लेखक नहीं
दिल की आवाजें लिखता हूं।
श्रृंगार रस का ले उदाहरण
विभत्स पात्रभी बनता हूं।।
कर संगत गुरूजनोंका
अलंकारे भी सिखता है हूं।
संधि समास पर्यायवाची
वाणी शक्ति पर बिकता हूं।।
लोकक्तिया और मुहावरे
कलम लेख सहारा हैं।
वाणी शक्ति, शब्दकोश
मन मंथन पसारा हैं।।
ब्याकरण का मुझे ज्ञान नहीं
कुरूप चेहरा दिखता हूं
मैं कवि नहीं लेखक नहीं
दिल की आवाजें लिखता हूं।।
अर्थ का अनर्थ न हो
,इसी बात पर खिझता हूं।
देख हालत वक्त की,
अश्रु धारा में भिंगता हूं
मैं कवि नहीं ,लेखक नहीं
दिल की आवाजें लिखता हूं।।