मैं कब हारा था….
मैं कब हारा था……….
बचपन में दौड़ा नंगे पाँव,
पाने को ठंडी ठंडी छाँव,
अनगिनत बार गिरकर उठा,
मन में नही है कोई कुंठा,
मैं कब हारा था………..
माता पिता की सुन डांट,
सीखा अनुशासन पाठ,
पथ पर बिछे थे शूल,
मेहनत से बन गए फूल,
मैं कब हारा था………
आगे बढ़ने का ले जुनून,
पालन कर हर कानून,
सुख दुःख की पारी में,
साथ मिला यारी से ,
मैं कब हारा था……..
धूप में तपकर दौड़ा,
ऐशो आराम को छोड़ा,
ले आगे बढ़ने की ललक,
चाह रखी छूने की फलक,
मैं कब हारा था…….
काव्य को बना मित्र,
रचता हूँ सुंदर चित्र,
मन में जगा मधुर चेतना,
हरता हूँ अपनी वेदना,
मैं कब हारा था ……
—-जेपीएल