मैं औऱ वो
मै नजरो से नजरे मिलाता रहा
वो नजरो से नजरे चुराती रही
मै उसे देखकर यू मचलता रहा
वो मुझे देखकर मुस्कुराती रही
मैं हुस्न की अदा पर मरता रहा
वो मुझे मोहब्बत में फसाती रही
मैं दिन भर उसे याद करता रहा
वो रात भर मुझे याद आती रही
मैं खुद की निगाहों से बचता रहा
वो दिल पर हुकूमत चलाती रही
मैं चेहरे को चाँद समझता रहा
वो गगन का चाँद दिखाती रही
मै खुद रुठकर मान जाता रहा
वो सच मानकर रुठ जाती रही
मैं सिद्दत से उसको बुलाता रहा
वो ख़ुशी से मुझे छोड़ जाती रही
मैं उससे इधर वफाई करता रहा
वो मुझे उधर बेवफा बताती रही
मै अपनी मोहब्बत यूँ लिखता रहा
वो वही गीत महफ़िल में गाती रही