मैं और हवा
मैं कितना आलसी हो गया हूँ
चाह रहा हूँ
आले में रखी हुई
डिबिया को बुझा दे
हवा का एक झोंका
और हवा तो मुझसे भी ज्यादा
आलसी हो गई हैं
नही हिला रही हैं
पेड़ का एक पत्ता तक भी।
(ज्येष्ठ की गर्मी में गहरी नींद में सोते हुए)
मैं कितना आलसी हो गया हूँ
चाह रहा हूँ
आले में रखी हुई
डिबिया को बुझा दे
हवा का एक झोंका
और हवा तो मुझसे भी ज्यादा
आलसी हो गई हैं
नही हिला रही हैं
पेड़ का एक पत्ता तक भी।
(ज्येष्ठ की गर्मी में गहरी नींद में सोते हुए)