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24 May 2023 · 1 min read

मैं और शहर

अट्टालिकाओं से घिरे हैं
ये शहर सिरफिरे हैं
भीड़ बहुत है यहाँ
पर आप अकेले निरे हैं.

भोर की डोर थामे
है चलना जरूरी
सुरक्षा की जद से
निकलना मजबूरी.

बरगद की शाखों पे
कैसे कोई झूले
झूले तो हैं
पर हैं फंदों के झूले.

न चिड़ियों का कलरव
न उड़ते परिंदे
चिंदी चिंदी है आशा
संस्कारों के उड़ते हैं चिन्दे.

अंधेरों से लड़ना है
सबक ठीक पढ़ना है
उजालों को गढ़ना है
सही राह बढ़ना है.

निकला हूँ डर को
सूली पर चढ़ाने
ये मेरा ही जिम्मा है
हैं मुझे डग बढ़ाने.

लादा हुआ ज्ञान
काँधे पे मैंने
रचना है इतिहास
कलम लेके पैने.

अपर्णा थपलियाल ” रानू “

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 189 Views
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