मैं और मेरे चार यार
मैं और मेरे चार यार
कुछ किस्से मस्ती भरे
कुछ नोक झोक, कुछ तकरार
कुछ गीत पुराने बजते थे
कुछ सपने सुहाने सजते थे
शाम सुबह कब होती थी
ये ध्यान किसे तब रहता था
कुछ फिल्में पुरानी होती थीं
कुछ नए फ़साने होते थे
वो समय ना जाने कहाँ गया
वो बिसरे ज़माने लगते हैं
जो बीत गए क्या लम्हे थे
वो यार ना जाने कहाँ गए
मन में है उम्मीद बड़ी
फिर बैठेंगे सब साथ कभी
बातें जमकर होंगी तब
और खूब फ़साने बिखरेंगे
फिर से होगी मस्ती की बौछार
जब मिल बैठेंगे
मैं और मेरे चार यार
–प्रतीक