मैं और मेरा
माया तेरी संसार भी तेरा ,
हमने मिथ्या भ्रम क्यों पाला l
अहंकार में चूर पड़े थे,
मै और मेरा में फसे हुए थे ll
शून्य तुल्य भी अस्तित्व न अपना,
सकल ब्रह्माण्ड की तुलना में l
विचरण करते युग युग बीते,
८४ लाख योनियों में ll
जन्म मृत्यु के दुर्ग में फसकर,
माया के जंजीरों में कसकर ll
मिथ्या भ्रम में झूम रहे हैं,
कितनो पर स्वामित्व दिखाकर ll
स्वामी नहीं हम दास के दास हैं,
इतनी समझ कहाँ है मुझमें l
रज कण जितनी भी भूमि न मेरी,
ऐसा ज्ञान कहाँ है मुजमे ll
घर,रिश्ते ,धन और वैभव,
अस्थायी संग है इनका l
जब मृत्यु शैया पर पड़े हम होंगे,
तब देखो ,कितना सच्चा संग है सबका ll
जब स्वयं का देह भी साथ छोड़ दे,
मृत्यु ऐसी कठिन परीक्षा l
हरिनाम तू रटले बन्दे,
मैं मेरा में फसने से अच्छा ll
व्यर्थ है जीवन की परिभाषा ,
व्यर्थ है सारी उपलब्धि l
यदि अंत समय हरिनाम न निकला ,
और नाती पोतों तक आशा सिमटी ll
मैं मेरा में मत फस बन्दे ,
रट ले रट ले हरि का नाम l
काल चक्र तेजी से भागे,
मत कर तू क्षण भर आराम ll
रट ले रट ले हरि का नाम ll 🙏