मैं और मेरा घर
तू और मैं एक दूजे के पूरक है ,
भले कोई समझे या ना समझे ।
मेरे बिना तू उदास ,तेरे बिना मैं ,
रहते है एक दूजे बिना उलझे उलझे से ।
मैं न रहूं तेरे साथ तो तेरे दरो दीवार,
देखते हैं बाट मेरे वापिस आने की ।
अनाथ से हो जाते हो ,कोई पूछने वाला नहीं,
तुझ पर जमती धूल मिट्टी मोटी परत की ।
मैं वापस आती हूं तो तेरी तकदीर चमकती है,
झाड़कर धूल ,झाड़ू बुहारी कर और
चीजें यथा स्थान जब रखी जाती है।
तेरी सूरत आईने सी चमकती है।
तेरे बिना मुझे भी कहां चैन होता है !
तुझसे मिलकर ही मुझे सुकून मिलता है ।
तू न हो मेरे पास तेरी याद पल पल सताती है ।
कौन संवारेगा तुझे ,तेरी चिंता सदा तड़पाती है।
तेरे संग रहने वाले और भी सदस्य है ,
मगर किसी को तेरी सुध नहीं होती ।
खोए रहते है अपने कार्य या मस्ती में ,
तेरी ओर देखने की भी फुर्सत नही मिलती ।
सिर्फ मैं ! हां सिर्फ मैं ! तेरी देखभाल करती हूं ।
कोई माने या न माने मैं तुझे कितना प्यार करती हूं ।
कोई यह रिश्ता समझे या ना समझे ,
कोई हमारा महत्व समझे या ना समझे ।
मगर यह सत्य शत प्रतिशत सत्य है ,
हम एक दूसरे के पूरक है।
तू मेरी आशाओं ,आकांक्षाओं का दर्पण है ,
मेरे सुन्दर सपनों की जीवंत तस्वीर है ,
मेरी रचनात्मक बुद्धि और रुचिमय मन की ,
कर्म स्थली है तू ।
तुझसे मेरा दिन शुरू होता है और
तुझी पर खत्म होती है रात ।
कोई इंसान मिले न मिले,
तुझसे रोज़ होती है मुलाकात ।
दर्द मिलता जब भी इंसानों से,
जाने कैसे तुझमें सब खो जाता है।
भूल कर हर गम एक तुझे संवारने और सजाने ,
यह मन रम जाता है।
प्रशंसा इंसानों से नहीं मिलती ,
कोई परवाह नहीं।
तू जो मुस्कुराकर अप्रत्यक्ष रूप से मेरे प्रयत्नों ,
और परिश्रम का पुरस्कार मुझे दे देता है।
मैं तुझको समझती हूं और
तू मुझे समझता है ।
हम दोनों का महत्व परस्पर हमारा मन ही ,
समझ लेता है।
मैं तेरी हूं तू मेरा है ,
और वैसे भी कोई माने या ना माने,
घर तो स्त्री का ही होता है ।