” मैं और मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि ” (संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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उद्देश और लक्ष्य की परिकल्पना मनुष्य स्वयं करता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति में कभी -कभी दृग्भ्रमित भी हो जाता है ! परन्तु इन सपनों को साकार करने की दिशा में गुरु का योगदान अद्वितीय माना गया है ! उनकी पारखी नज़र, उनके अनुभव और उनकी दक्षता अपने शिष्यों को कहीं और नहीं भटकने देती है ! पर इस तरह की बातें सिर्फ आदि काल के इतिहासों में ही हमें मिलती है यह कहना तर्क संगत ना होगा ! आज भले ही गुरुओं की छत्र -छाया सम्पूर्ण अपने छात्रों के लिए समर्पित ना हो फिर भी इनके सलाह,निर्देश और हितोपदेश के वल पर ही शिष्यों के भविष्य की रूप रेखा बन पातीं हैं !
अपवाद हमें हरेक युग में देखने को मिलता है ! एकलव्य एक भील बंजारा था ! उसने गुरु दोर्ण से अपने गुरु बनने का अनुरोध किया पर गुरु दोर्ण ने उसे अपना शिष्य नहीं बनाया ! एकलव्य ने उनकी मूर्ति बनाई और उन्हें गुरु मानकर अभ्यास करने लगा और अर्जुन से भी निपुण धनुर्धर बन गया ! सच्ची लगन, परिश्रम और अनुशासन के मापदंडों पर खरे उतर जाएँ तो हर कार्य सफलता के करीब पहुँच जाता है !
2002 में मेरी सेना से सेवानिवृति हुई ! दुमका झारखंड की उप- राजधानी है ! अपने घर पहुँच गए ! दुमका में हिन्दी ,भोजपुरी ,बंगला ,खोरठा,अंगिका,अपभ्रंश बंगला और मैथिली के साथ -साथ संथाली भाषा बोली जातीं हैं ! इन सारी भाषाओं प्रयोगात्मक भंगिमा का आभास हो गया था ! परंतु हमलोग अपने घरों में मैथिली भाषा का प्रयोग करते हैं ! बोलना तो जानते ही थे ! लिखने के प्रयोग में देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करते हैं !
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल हैं ! मैथिली भाषा भी इनमें से एक है ! मुझे मिथिलाक्षर /तिरुहुता लिपि सीखने की जिज्ञासा होने लगी ! बहुत से जानकार और अनुभवी लोगों से संसर्ग किया परंतु उनके निर्देश काम नहीं आये ! कोई बड़े- बड़े लेख मिथिलाक्षर में लिखकर फेसबूक के माध्यम से भेजने लगे ! किसी ने कहा ,—
“आप एक लिपि की किताब खरीद लें और अभ्यास करें !”
कई महानुभावों ने तो “मिथिलाक्षर अभियान” ही चला रखा है ! ग्रुप और व्हात्सप्प का भी ताँता लगा हुआ है ! परंतु उनकी रफ्तार “बुलेट ट्रेन” की गति से चलती थी ! और मैं ठहरा एक अनाड़ी ! मुझे तो धीरे -धीरे सीखना था ! उम्र के आखिरी पड़ाव बस एक ललक लग गयी थी ! यह मैं भलीभाँति जनता हूँ कि मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि को जानने वाले बहुत कम हैं ! यहाँ तक मैथिल अपनी पहचान को धूमिल कर रहे हैं ! अपनी भाषा मैथिली को अपने घर में नहीं बोलते हैं ! अधिकांश लोग मैथिली देवनागरी लिपि में भी नहीं लिख सकते ! सभी भाषाओं को सम्मान देना चाहिए परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि अपनी मातृभाषा की अवहेलना करें !
मिथिलाक्षर /तिरहुता लिपि वर्णमाला गूगल से डाउन लोड किया और प्रत्येक दिन वर्णमाला को सीखना प्रारम्भ किया ! संयुक्त अक्षर लिखना एक टेढ़ी खीर थी ! किसी न किसी तरह लिख- लिख कर अपने फेसबूक टाइम लाइन डालने लगे !
बहुत से मैथिलों ने मुझे कहा ,—–
“यह तो बंगला लिपि है!”
मुझे बहुतों को समझाना पड़ा,——–
“भाई ,मिथिलाक्षर /तिरुहुता लिपि बहुत प्राचीन लिपि है ! इसी से प्रभावित होकर बंगला ,आसामिया और ओडिया लिपिओं की संरचना हुईं !”
मिथिलाक्षर/तिरहुता लिपि का विकास आठमी शताब्दी में हो गया था ! अन्य लिपियाँ बंगला ,आसामिया और ओडिया का विकास कालांतर में हुआ !
एक दो मैथिली ग्रुप के अड्मिन ने मुझसे आग्रह किया,—-
” हमरा ग्रुप सं जुड़ि जाऊ हम मिथिलाक्षर क ट्रेनिंग सेहो दैत छी !”
आखिर उनलोगों से भी जुड़ा पर दूर रहकर बड़े -बड़े लेखों को मिथिलाक्षर में पढ़कर और भी मैं पेचीदा बनता गया ! विडम्बना तो देखिये गूगल में हरेक लिपियाँ हैं ! आप सारी लिपिओं का प्रयोग कर सकते हैं पर मैथिलाक्षर में लिखने का अप्प नहीं आया है !
प्रयास निरंतर मेरा चलने लगा ! मेरे सपनों को साकार करने में एक व्यक्ति का योगदान है जिन्होंने मुझे Script Converte का गूढ़ रहस्य दिया और मैं अपने अथक प्रयास से कुछ हद तक सफल हुआ !
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
14.9.2024