मैं और तू
मैं और तू
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शीर्ष लोम से चरण नख तक
एक तेरे ही नाम से बंधी हूँ मैं
अंग अंग किया अर्पण तुझ पर
सौगंध के वचनों में सधी हूँ मैं !!
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कोई पूछता है मेरा नाम पता
नजर तेरी और झुका देती हूँ मैं
मेरा मुझ में कुछ नही तेरे बिन
सृष्टि में बस तेरे लिये बनी हूँ मैं !!
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माना तेरा सब कुछ मेरा है
हर मोड़ पर मेरी पहचान है तू !
कोख से लेकर शैय्या तक
मेरी बनती रही सूत्रधार है तू !!
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नादाँ है जो न समझे तुझको
सम्पूर्ण जीवन का सार है तू
बिन तेरे ये जीवन यज्ञ अधूरा
जिंदगी के अचूक हर वार की, मेरे लिये बनी शशक्त ढाल है तू !!
मेरा मुझ में कुछ नही तेरे बिन, मैं निर्जर शरीर और प्राण है तू !!
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डी. के. निवातिया
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