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27 Mar 2017 · 1 min read

मैं और तुम

मैं तुझ से हूँ
तु भी है मुझ से
क्यूँ बीच लकीर खींच हम खड़े
क्यूँ फिर रंजिश के दौर चले

ज़रूरत है तुझे मेरी
क्या इस बात से ख़फ़ा है तू मुझसे
मेरी जिंदगी तुझ पे है निर्भर
क्यूँ खीजूँ मैं भी इस सच पे

न मैं भगवान हूँ
न देवता ही धरती पे
पर हूँ न शैतान
न क़ातिल ही हूँ तेरा

इंसान हूँ मैं भी तेरी तरह
तेरे ही गुण अवगुण से भरा
नहीं हूँ मैं तुझ से बढ़कर
हूँ नहीं पर किसी से कमतर

बदइंतज़ामी का सताया है तू
तो बदहाली का शिकार मैं भी हूँ
शियासत की बिसात पे तड़पता
तेरी तरह एक प्यादा मैं भी

तेरी सेवा करना है धर्म मेरा
तेरा जीवन बचाना ही फ़र्ज़ मेरा
मेरी कर्मभूमि मेरे रक्त से रंजित करना
क्यूँ समझ लिया पर तुने करम अपना

मैं तुझ से हूँ
तु भी है मुझ से
क्यूँ बीच लकीर खींच हम खड़े
क्यूँ फिर रंजिश के दौर चले

#डाकटर – मरीज़ का रिश्ता

Language: Hindi
578 Views

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