मैं और तुम
मैं तुझ से हूँ
तु भी है मुझ से
क्यूँ बीच लकीर खींच हम खड़े
क्यूँ फिर रंजिश के दौर चले
ज़रूरत है तुझे मेरी
क्या इस बात से ख़फ़ा है तू मुझसे
मेरी जिंदगी तुझ पे है निर्भर
क्यूँ खीजूँ मैं भी इस सच पे
न मैं भगवान हूँ
न देवता ही धरती पे
पर हूँ न शैतान
न क़ातिल ही हूँ तेरा
इंसान हूँ मैं भी तेरी तरह
तेरे ही गुण अवगुण से भरा
नहीं हूँ मैं तुझ से बढ़कर
हूँ नहीं पर किसी से कमतर
बदइंतज़ामी का सताया है तू
तो बदहाली का शिकार मैं भी हूँ
शियासत की बिसात पे तड़पता
तेरी तरह एक प्यादा मैं भी
तेरी सेवा करना है धर्म मेरा
तेरा जीवन बचाना ही फ़र्ज़ मेरा
मेरी कर्मभूमि मेरे रक्त से रंजित करना
क्यूँ समझ लिया पर तुने करम अपना
मैं तुझ से हूँ
तु भी है मुझ से
क्यूँ बीच लकीर खींच हम खड़े
क्यूँ फिर रंजिश के दौर चले
#डाकटर – मरीज़ का रिश्ता