मैं और तुम-कविता
.मैं और तुम
हर सुबह पत्तों पर चमकती ओस हो तुम,
हर मास का अंजोर पाख हो तुम।
तुम होली, दीवाली और दशहरा
और ईद का उगता चाँद हो तुम।।
मंदिर, मस्जिद और गिरिजाघर की,
आरती,नमाज और प्रेयर हो तुम।
सुंदर कपास का फूल हो तुम
मिट्टी की सौंधी खुश्बू हो तुम
अमीरी का मुकम्मल ख्वाब हो तुम,
मरते की आखिरी सांस हो तुम।।
||
तुम सर्दी की गर्म हवा,
मैं मई-जून की गर्मी सा।
उगते सूरज की चमक हो तुम,
मैं कोहरे में डूब रहा।
तुम हीरा कोहिनूर जैसी ,
मैं घोर अंधेरे सा काला।
अति प्यासे की प्यास हो तुम,
मैं भरे पेट के जूठन सा ।