” मैं ऐसी ही हूं “
छोटा-सा हैं हृदय मेरा ,
छोटी सी है मेरी दुनिया ।
थोड़ी सी सयानी हूं , थोड़ी है बचकानिया ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी गलती पर जुबान लड़ाती ,
कभी गलती चुपचाप सह जाती ।
कभी थोड़ी शर्म आ जाती ,
कभी सभी को सबक सिखाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी सभी को ज्ञान बांटती ,
कभी सभी से ज्ञान ले आती ।
कभी बाल की खाल निकालती ,
कभी खुद बाल बन जाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी अंधेरे से घबराती ,
कभी अंधेरे को मैं डराती ।
कभी सभी को मार्ग दिखाती ,
कभी खुद मार्ग भटक जाती ,
कभी खुद मैं मार्ग बन जाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी पतझड़ में शोर मचाती ,
कभी बसंत में शांत हो जाती ।
कभी गन्ने की खंडेरी बन जाती ,
कभी रसभरी मैं कहलाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी सवालों का बाग लगाती ,
कभी जवाबों की बाढ़ लाती ।
कभी मैं सभी को छु आती ,
कभी खुद एक पहेली बन जाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
कभी प्यार की गंगा बहाती ,
कभी नफरतों में घीर जाती ।
कभी सभी की साथी बन जाती ,
कभी खुद को अकेला पाती ,
कभी मैं खुद कहानी बन जाती ।
वो क्या है ना , मैं ऐसी ही हूं ।
? धन्यवाद ?
✍️ज्योति ✍️
नई दिल्ली
( जन्मदिन पर खुद को समर्पित )