मैं उड़ सकती
मैं उड़ सकती मेरे भैया, नहीं गगन में जाती।
जहाँ डटे हो तुम मोर्चे पर, पास तुम्हारे आती।
करगिल हो या सियाचीन भी, पहुँच वहाँ मैं जाती।
तेरे कर कमलों को भैया, राखी बाँध सजाती।
साथ तुम्हारे वहीं बैठकर, मोहन भोग खिलाती।
……… ।
दिखला देती पौरुष अपना, कितना दम है मुझ में।
आँख उठाने की फिर हिम्मत, रहती कभी तुझमें।
बहना से मैं गुरु बन जाती, मंत्र यही दे आती।
…. ….।
इतना सुनकर भैया मेरा, शिखर हिमालय बनता।
कभी शर्म से भारत माँ का, शीश न नीचे झुकता।
जन गण के फिर साथ बैठकर, गीत खुशी के गाती।
……….।
अब बहना कहती है कि- जब मेरा भैया
शत्रु के मन में इतना खौफ भर देगा कि शत्रु
को मेरी तरफ नजर उठाकर देखनेकी हिम्मत
नहीं रहेगी, जिस दिन मेरे सारे दुश्मन मुझै
और भारत माँ को सलाम करेंगे तब मैं गगन
में उड़ूँगी।
अभिलाषा देखिए –
नीलांबर में उड़ जाऊँगी, बनकर उसका स्वामी।
पाक चीन या हो कोई भी, देगा मुझे सलामी।
मानो, पूर्वज गए सौंप कर, मुझको संस्कृति थाती।