मैं ईमानदार था!
शीर्षक – मैं ईमानदार था!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर ,राजस्थान
मो. 9001321438
मैं ईमानदार था
आगे था पंक्ति में,
पर्दा उठ गया झट
ईमानदारी का झीना
तब पंक्ति में पीछा था।
हर ईमानदारी पंक्ति में
हर बार आगे होती है।
ईमानदारी पंक्ति में पीछे
होते ही ध्वस्त हो जाती।
झूठा भी था तब मैं
अपनी ही बात करता
था अकेला विचार पथ।
बना सत्यवादी हरिश्चंद
कही लोगों की झूठ बात
घिर गया भारी भीड़ से
लोकप्रिय झूठ जो है साथ
सत्य बिखेर देता सब
झूठ चमका देता किस्मत?