मैं इश्कबाज़ नहीं
हे रूप मंजरी देख तुम्हें
मन में ना कोई भाव जगा
मैं व्यक्ति सिद्धांतवादी हूँ
अपने पर ज़्यादा भाव ना खा
हाँ देख लेता कभी तुम्हें
पर मैं इश्कबाज़ नहीं
जो तुम समझो इश्कबाज़ मुझे
तो देखती तो तुम भी हो
ये कोई एकल आगाज़ नहीं
पर मैं इश्कबाज़ नहीं
तुम पूर्णिमा की चांद हो या परियों की रानी
तो मैं भी हूँ संस्कार और संस्कृतियों का पुजारी करना चाहता नहीं नादानी
किंतु कोई भाव हो तो निःसंकोच कहना
सारंग सुन लेता हर बात बेजुबानी
रब से मिली मोहक छवि से बनो न अभिमानी
नहीं तो कलयुग में भी अकेली,रह जाओगी राधा रानी
नैन लड़ें फ़िर कभी
तो समझना ये एकल आगाज़ नहीं
पर मैं इश्कबाज़ नहीं
मन में ना ऐसा भाव सँजोता,जो डिग जाए अरमानों से
सारंग करता है कार्य वही जो जुड़ा रहे स्वाभिमानों से
एक दिली ख्वायिस रहती है
कोई ना मेरा मोहताज बनें
पर मैं कोई सरताज नहीं
मैं इश्कबाज़ नहीं
सर्वेश यादव(सारंग)