मैं इन्सान हूँ
मैं इन्सान हूँ… मुझे आजाद रहने दो.. मुझे न धर्म की बेड़ियों में बाँधो …न मुझ पर रूढ़ीवादिता का कम्बल डालो……..साँसे लेकर आया हूँ उधार की…. ज़िन्दगी मिली है दिन दो चार की…
क्यूँ नफ़रत और जंग में सबकुछ गँबाऊँ मैं… इससे तो अच्छा हो खुशियाँ और प्यार फैलाउँ मैं..
Ragini garg