मैं आम आदमी हूँ
सड़क किनारे पे खड़ा हुआ मैं एक सवाल हूँ
मैं मुल्क की आवाम का ख़ामोश सा ख़्याल हूँ
मैं चुप रहूँ तो ठीक हूँ मैं कुछ कहूँ बवाल हूँ
मलाल हूँ निढाल हूँ मगर ग़ज़ब मजाल हूँ।
कभी मैं खून हूँ कभी खून का उबाल हूँ
हाँ मैं उसी खून से सना हुआ रुमाल हूँ
मैं आम आदमी हूँ हर रोज़ ही हलाल हूँ
मलाल हूँ निढाल हूँ मगर ग़ज़ब मजाल हूँ।
-Johnny Ahmed ‘क़ैस’