” मैं आनन्दित हो गया हूँ “
अबोध हूँ , अनभिज्ञ हूँ ..
संसार के रीति-रिवाजों से जकड़ा हूँ..
घुमक्कड़ी जिज्ञासा और बटोही बनकर,
लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा हूँ ।
प्रकृति की गोद में आकर
आज ” मैं आनन्दित हो गया हूँ ”
● श्याम कलेवर मेघ मेरे,
साथी बनकर चल रहे हैं ।
इस एकान्त अरण्य में मेरा,
पक्षी स्वागत कर रहे हैं ।
शीतल जल से प्यास बुझाकर ,
आगे बढ़ता जा रहा हूँ ।
प्रकृति की गोद में आकर
आज ” मैं आनन्दित हो गया हूँ ”
● श्वेत पुष्पों से अलंकृत धरा में,
मंद-मंद बहती शीतल हवा में ।
अदभुत छटा बिखेरे नभ में,
सूर्यनारायण को निहार रहा हूँ ।
प्रकृति की गोद में आकर
आज ” मैं आनन्दित हो गया हूँ ”
● धैर्य न मेरा टूटने दिया,
थकान का देह को आभास न हुआ ।
घने वृक्षों का आँचल पाकर,
हर्ष से हृदय गदगद हुआ ।
परमात्मा की इस लीला का कैसे,
अपने शब्दों में बखान करूँ ?
प्रकृति की गोद में आकर
आज ” मैं आनन्दित हो गया हूँ ”
● तू समक्ष न था , फिर भी तेरा अनुभव हुआ ,
तुझसे मिलने , तुझे जानने के लिए मन प्रफुल्लित था ।
बहुत कुछ कहना चाहता था, परन्तु कण्ठ मेरा अवरुद्ध था ,
बन्द नयनों से तेरे स्वरुप का, अश्रुओं से अभिषेक हो रहा था।
हे परमपिता परमेश्वर..!
फड़फडाते होंठों से मैं कैसे तेरी स्तुति करूँ ?
तेरी इस सुंदर कृति को देखकर आज ,
” मैं आनन्दित हो गया हूँ ”
©®_( अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’ )