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24 Sep 2021 · 2 min read

मैं आदमी हूँ

(अरुण कुमार प्रसाद )
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मैं आदमी हूँ।
जीव के श्रेष्ठ संयोजन के तहत संयोजित।
अपरिभाषित पुतला नहीं।
स्वच्छ वाणी है मेरी।
मैं रहा तुतला नहीं।
आदमी का अस्तित्व व्यक्तिपरक नहीं
प्रयोजनप्रिय है,
इसे झुठला नहीं।
बहुत गहरी आस्था है मेरी
मानवीय मूल्य,संस्कारों में,
कोई उथला नहीं।

आदमी का
सह-अस्तित्व में विश्वास,
होता काश! अदम्य।

ईश्वर को बाँटना,
बाँटकर
एक दूसरे के ईश्वर के हाथों में
थमाना हथियार
और फैलाना आतंक
हो अपराध अक्षम्य।
ऐसा आदमी
टोकरी का सड़ा हुआ अंडा है।
आदमी के जमात में
मंतव्य,चरित्र और कर्तव्य से
शत प्रतिशत गंदा है।
त्याग नहीं, हो विध्वंस।
बचे न कोई अंश।

सच सुनोगे आदमी!
सारा दु:ख तुम्हारे कारण है,
श्रेष्ठता धारण किए हुए नर!
विचारों में
तुच्छता होता रहा है उजागर।

सारी संपदा पृथ्वी की है।
अत: अधिकृत है हर आदमी
सदुपयोग हेतु।
दिशाहीन और अकल्याणकारी संग्रहण
अमान्य हो।
शक्ति में सूर्य,चन्द्र हो अथवा
अभक्ति में राहू,केतू।

आदमी हो बनो सामूहिक
बना लेते हो महान, सारा कुछ ऐकिक।
यह न हो ‘तुम्हारे होने’ का हिस्सा।
मनुष्य, बने रहो मनुष्य ही
कर कुछ ऐसा।

सत्ता के शीर्ष पर
क्रांति से उपजे विचारशील लोग हों।
सत्ता घरानों का कभी न भोग हो।
मैं आदमी हूँ,तुम भी।
आदमीयत त्यागो नहीं।

ग्रन्थों में जो लिखा है पढ़ते हो
और उच्च श्रेणियों से पास करते हो
जो कम पढ़ते हैं
अर्थात कम करते हैं आत्मसात।
हो जाते है अनुत्तीर्ण
यह उनको है व्याघात।

ग्रंथ की सीखें गली में और कूचों में
सार्वजनिक क्यों न हों।
लिखित परीक्षाओं से उतर
‘जीवित’ परीक्षाओं में
सम्मिलित क्यों न हो?

इन प्रश्नों को प्रश्नों से उतारकर
उत्तर लिखने की है अवशकता।
मैं आदमी हूँ,
मरण का भय त्यागता नहीं मुझे।
करो कोई अमृत की व्यवस्था।
—————————————-

Language: Hindi
541 Views
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