मैं आज का पत्रकार हूँ !
मैं आज का पत्रकार हूँ ,
खबर नहीं , सिर्फ प्रचार हूँ ।
सत्ता से मेरा सीधा सरोकार है,
पत्रकारिकता मेरे लिए व्यापार है ।
जो कहा जाता कहने को कहता हूँ ,
शासन के इशारे पर अब बहता हूँ ।
हर शाम टीवी पर बहस कराता हूँ ,
लोगों को भड़काता हूं खूब लड़ाता हूँ ।
खबर वही चलती जो सरकार को भाए ,
टीआरपी बढ़े और खूब परचार भी आए ।
पत्रकारिकता का अब कोई धर्म नहीं ,
व्यवस्था परिवर्तन अब मेरा कर्म नहीं ।
जनमानस का मुझे अब खयाल नहीं,
सही और गलत का कोई मलाल नहीं ।
हां सच है , इक दौर वो भी था ,
जब पत्रकारिकता पेशा नहीं धर्म था ।
लोगों की आवाज उठाना ही नित्य कर्म था ,
अंग्रेजों को भी हमने दातों चने चबवाया था ।
लोगों को अखबारों ने ही तो जगाया था ।
हम ही थे जो गांधी की आवाज बने,
अशफ़ाक और बिस्मिल के गीतों की साज़ बने।
अंबेडकर के मूक नायक थे हम,
पिछड़ों के एकमात्र सहायक थे हम।
अब हमारी कलम में वैसी धार कहां ?
स्याही भी सूख चली, अब वो सार कहां ?
अब तो पेशा है , घर मुझे भी चलाना है ।
मकान बनाना है , बच्चो को पढ़ना है ।
मैं आज का पत्रकार हूँ ,
खबर नहीं , सिर्फ प्रचार हूँ ।