मैं अभागी भारत हूँ
मैं भारत हूँ,
अब जर्जर और संतप्त हुई हूँ
अब तक गैरों ने ही लूटा था
अब अपनों के हांथो ही अभिशप्त हुई हूँ
डलहौजी तो ग़ैर था फिर भी
अब अपने सब मनमौजी हैं
अपने अपने जगह पे बैठे
हांथ में थामे लोहा
पैर में लोहा बांधे फ़ौजी हैं
जो मेरे ही गर्म खून के खोजी हैं।
तुम ने हमको झूठ कहा था
चलो उसे ही हम सच कहते हैं
उठो, दिखाओ विकास कहां है
जिसका रस्ता हम तकते हैं
विश्वगुरु कहलवाने का हम
बस उम्मीद ही कर सकते हैं
रातों को लाखो बच्चे मेरे भूखे ही जो सोते हैं
सीतायें निर्वासित तो रज़िया कहीं पे कैदी है
इंद्रप्रस्थ बनाना है तुमको तो
नागों को तुमने शोलों में घेरा है
जंगल में जिनका अनादिकाल से डेरा है
मैं भारत हूँ,
अब जर्जर और संतप्त हुई हूँ
अपने एकलब्यों के लिए
मैं वाणी अव्यक्त हुई हूँ
तुम्हारे कलुषित अभिलाषा से
जंजीरों में कैद हुई हूँ
लोक तंत्र के लाश पे बैठी
मैं अभागी भारत हूँ
~ सिद्धार्थ