“मैं अपनी ज़रूरतें कुछ कम कर लूँगा”
बहुत हुआ परेशां अब दम भर लूँगा
मैं अपनी ज़रूरतें कुछ कम कर लूँगा
हवा बनकर चलूँगा मैं, तूफ़ां बनकर नहीं
छोटी छोटी खुशियों को भी घर कर लूँगा
ख़ुद ही लगाऊंगा अपने ज़ख्मों पर मरहम
हर दर्द पे मुस्कराके दर्द कुछ कम कर लूँगा
दबाकर रक्खूँगा मैं दिल में इल्तिज़ा अपनी
ख़ुदी को बनाकर आईना उसी में संवर लूँगा
शह की गुजारिशें करना ही छोड़ दूँगा अब
ख़ुद ही लगाउँगा मैं ज़ोर, ख़ुद ही उभर लूँगा
मैंने देखें हैं कई चेहरें खुदगर्ज़ इस ज़िन्दगी में
नहीं चाहिए हमदर्द ख़ुदी को हमदर्द कर लूँगा
“अजय”कोई नाम नहीं है बेबसी का इस जहाँ में
मैं अजय हूँ हर मुश्किल हर तकलीफ़ से लड़ लूँगा
___अजय “अग्यार