मैं अकेला हूं
मैं अकेला हूं
दर्द भरे गीतों का मेला हूंll
इंसानों की भीड़ में तन्हा रहता हूं
अकेलेपन का गम मैं सहता हूं
आज मानव का जीवन एक दिखावा है
उनका व्यवहार महज एक छलावा है
उस छलावे से दूर मैं प्रेम शब्द से खेला हूं।।
मैं अकेला हूं…
आज ना प्यार है,ना विचार है, चारों तरफ हाहाकार है
कहीं ईर्ष्या, कहीं क्रोध, तो कहीं झूठ का व्यापार है
आज धर्म और जात का जहर घुल गया मानव के सर पर खून सवार हैं
आज भाई-भाई को मारने का कर रहा इंतजार है
मैं उन भाइयों को मिलाने
वाला उस गुरु का चेला हूं ।।
मैं अकेला हूँ…
क्या ये वही भारतवर्ष है जहां जन्म लिया अवतारों ने
आज देश को खोखला कर दिया, इन श्वेत पोश सियारों ने
रिश्वतखोरी भ्रष्टाचारी अब भी है देश में
कुछ खूनी दरिंदे घूम रहे हैं अब भी श्वेत वेश में
आपको समझाने निकला मैं पथिक अलबेला हूं।।
मैं अकेला हूँ…..
कृष्ण धत्तरवाल।।