“” *मैंने सोचा इश्क करूँ* “”
“” मैंने सोचा इश्क करूँ “”
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( 1 ) मैंने
सोचा इश्क करूँ,
करूँ स्वयं से बेइंतहा प्यार !
और चलूँ बाँटता सभी में प्रेम मोहब्बत..,
बहाता रहूँ सदैव आनंद रस की बयार !!
( 2 ) मैंने
विचारा ना कभी,
कि, कौन है अपना यहाँ पराया !
बस, चला लूटाते निश्चल प्रेम प्यार…..,
और करता रहा इश्क सदा मुस्कुराया !!
( 3 ) मैंने
रखी ना अपेक्षाएं,
और करी ना अनदेखी कभी उपेक्षाएं !
बस, चला निभाते अपना कर्तव्य कर्म…..,
और रखी ना मन में किसी के प्रति एषणाएं !!
( 4 ) मैंने
करना सीखा इश्क,
सदैव मन की गहराइयों से निःस्वार्थ !
और चला सभी से करता यहाँ सच्चा प्यार..,
बना ईश्वर को साक्षी, रहा करता परमार्थ !!
( 5 ) मैंने
देखा इश्क में,
यहाँ पे दो दिलों को धड़कते हुए !
और बह गयी जज्बातों की आंधी यहाँ पे..,
रहा अंतस में सदा प्रेम गौहर ढूंढते हुए !!
( 6 ) मैंने
इश्क से इश्क,
करना सीखा और स्वयं से चला करता इश्क !
रहा इश्क में करता सदा प्रभु उपासना….,
और रमा रहा सच्चे दिलसे प्रभु से करता इश्क!!
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सुनीलानंद
गुरुवार,
30 मई, 2024
जयपुर,
राजस्थान |