मैंने सोचा??…. आज फिर नयी कविता लिखूं।
मैंने सोचा, आज फिर नयी कविता लिखूं।
कल्पनाओं की, एक नयी प्रतिमा गढ़ू।।
मैंने सोचा…….।।
विचारों को एकत्र करूं फिर, शब्दो को पदबद्ध करूं।
मैंने सोचा……..।।
भावों की स्याही भर कर फिर, लेखनी मैं करबद्ध करूं।
मैंने सोचा……..।।
श्वेतपत्र पर भावों से फिर, छंद सुधा संयुक्त करूं।
मैंने सोचा ……..।।
विविध रसों की ऋचाओं से फिर, शब्दशक्ति मैं प्रयुक्त करूं।
मैंने सोचा……….।।
अलंकार की माया से फिर, कविता की शोभा… अर्थयुक्त करूं।
मैंने सोचा ………।।
शब्दक्रांति की नींव रखूं फिर, युवा शक्ति एकत्र करू।
मैंने सोचा……….।।
राष्ट्र भक्ति की ज्योति से फिर, युवा (राष्ट्र) शक्ति उद्युक्त करू।
मैंने सोचा………..।।
कागज़ कलम की धार से मैं फिर, असभ्यता का प्रतिकार करूं।
मैंने सोचा…………।।
जनजागृति की चिंगारी से फिर, इंकलाब उदघोष करूं।
मैंने सोचा…………।।
वीरों की इस धरती से फिर, जयहिंद की हुंकार भरू।
मैंने सोचा…………।।
संस्कृति और संस्कारों से फिर, राष्ट्र प्रीति मैं व्यक्त करूं।
मैंने सोचा………..।।
मैंने सोचा आज फिर नयी कविता लिखूं।
कल्पनाओं की फिर दुनिया रचू।।
जय हिंद जय भारत।
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