मैंने पहचान लिया तुमको
जीवनाधार तुम कहलाते
तुम मेरे सपनों में आते
तुम मेरे उरपुर के वासी
तुम मुझसे कविता लिखवाते
जब भी तुम दर्शन देते हो
मेरी पीड़ा हर लेते हो
मेरे नयनों के सागर में
तुम अपनी नौका खेते हो
पा तुम्हें धन्य मैं हो जाता
जो कुछ करता तुमको भाता
मिट जाता भेद परस्पर का
जब जुड़ जाता अटूट नाता
जो मैं करता वह तुम करते
तुम मुझमें चेतनता भरते
मैंने पहचान लिया तुमको
अनजान मगर तुमसे डरते
महेश चन्द्र त्रिपाठी