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15 May 2024 · 1 min read

मैंने पहचान लिया तुमको

जीवनाधार तुम कहलाते
तुम मेरे सपनों में आते
तुम मेरे उरपुर के वासी
तुम मुझसे कविता लिखवाते

जब भी तुम दर्शन देते हो
मेरी पीड़ा हर लेते हो
मेरे नयनों के सागर में
तुम अपनी नौका खेते हो

पा तुम्हें धन्य मैं हो जाता
जो कुछ करता तुमको भाता
मिट जाता भेद परस्पर का
जब जुड़ जाता अटूट नाता

जो मैं करता वह तुम करते
तुम मुझमें चेतनता भरते
मैंने पहचान लिया तुमको
अनजान मगर तुमसे डरते

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
105 Views
Books from महेश चन्द्र त्रिपाठी
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