*मैंने देखा है * ( 18 of 25 )
मैंने देखा है
मैंने बाती को, सूर्य में ढ़लते देखा है
सूर्य को संघर्ष मे, जलते देखा है …
उम्मीद की सुबह ,कर्म की दोपहर देखीं
जीत को हर शाम, ढ़लते देखा है …
मैंने देखा सोच से परे, कुछ सोचते
सितारे को जमी पर ,टहलते देखा है …
कुछ ख्वाब ,मायूसियों में डूबे हुए थे
उन्हें हकीकत की ऒर बढ़ते देखा है …
मैंने देखा जीवन के ,हर कहर को
भाग्य से डट कर ,झगड़ते देखा है …
सच से दमकते, देखा एक चहरा
हर रोज़ उसे ,पढ़ कर देखा है …
– क्षमा उर्मिला