मैंने गज़ल लिखी
नहीं दिखी धूप तो उदास हो गए
दो दिनों से रुकी हुई प्यास हो गए ।
देखी जो आज सुबह, धूप गुनगुनी
मुरझाए गीत मधुमास हो गए ।
होता नहीं संभव अकेले ये कभी
दोनों के हाथ, सफल प्रयास होगये ।
तीन टाँग दौड़ में, चार पग तीन हो
संघर्ष- मय जीत की मिठास हो गए
तन लगी धूप का, देखकर खुला बदन
कपोल नीम वृक्ष के, पलाश हो गए ।