मैंने कितनी अदाएँ बदलीं
मैंने कितनी अदाएँ बदलीं
तुम्हे रिझाने की ख़ातिर
मैंने अधरों पे बंसी सजाई
तुम्हे लुभाने की ख़ातिर
न जाने क्यों दुनिया
सुन कर चली आती है
मेरी बंसी की तान
सिर्फ़ तुम को बुलाती है
मेरी तरह ये भी मिलन के
स्वप्न सजोया करती है
मेरे साथ मेरी बंसी भी
तेरे विरह में रोया करती है
तू न मिला तो तेरी कसम
मैं बंसी बजाना छोड़ दूँगी
बंसी मुझे अज़ीज़ है पर
मैं ताब में बंसी तोड़ दूँगी
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)