मैंने कभी न मानी हार (1)
लाखो बार बुझा है दीपक
लाखो बार मिटा है तेल
लाखो बार कश्तियां डूबी
लाखों बार हुई है देर
पर सिंधु से आंख लड़ाकर
करी हमेशा नैया पार
मैने कभी ना मानी हार..
अंधियारे ने कभी डराया
कभी झंझोड़ा झोंको ने
कभी गिरी हूं नादानी से
कभी गिरी हूं धोखो से
पर गिरगिरकर भी उठती हूं
और सघन लेती विस्तार
मैने कभी ना मानी हार..
©प्रिया✍️