मे आदमी नही हु
मैं ऐसा आदमी नहीं हूँ जिससे प्रेम किया जा सके। आपको मुझसे लगाव हो सकता है मगर प्रेम करने की हिमाक़त आप न करें तो बेहतर है। लाख समझने और समझाने पर भी आप प्रेम में अपेक्षा रखेंगे और मुझसे अपेक्षाएँ रखना दुनिया के वाहियात कामों में से एक है। हम साहित्य पढ़ते हैं तो वहाँ से जीवन जीने के गुर अपनी काली शर्ट की जेब में रख लेते हैं मगर प्रेम करते समय हम रंगीन शर्ट पहनते हैं और सारे गुर काली शर्ट में तुड़-मुड़ कर पड़े रह जाते हैं। आप प्रेम के बदले प्रेम पाने की अपेक्षा रखेंगे और मैं आपके साथ प्रेम का छलावा मात्र कर सकता हूँ। मैं खुद के बारे में थोड़ा बहुत तो जानता हूँ। मेरे घर में कोई प्रवेश नहीं। कोई दरवाज़ा नहीं। कोई खिड़की नहीं। दरवाज़े के निचले हिस्से पर भी सीमेंट जमा है।
मैं खुश रहूँगा तो आपको ये तक बताऊँगा कि आज 72 सेकंड में रुबिक्स क्यूब सॉल्व कर दिया। मगर उदासी है तो हाथ में रस्सी लिए भी आपका नंबर डायल नहीं करूँगा। खुश रहा तो आपके फ़ोन की गैलरी मेरे आड़े-टेढ़े मुँह की तस्वीरों से भरी रहेगी और उदास रहा तो महीनों आपका मैसेज इन्बॉक्स में पड़ा चीखता रहेगा मगर मैं कानों में रुई भर उदासी की नशीली तस्वीर बनाता रहूँगा। खुश रहा तो डाकिये को नींद में भी आपके घर का रास्ता याद रहेगा और उदास रहा तो ख़त लिखने वाली अपनी उँगलियाँ तक तोड़ सकता हूँ। खुश रहा तो आपके एक कॉल पर आपके शहर पहुँच सकता हूँ और उदास रहा तो एक ऐसे पहाड़ पर जा सकता हूँ जहाँ पहुँचने में आपकी साँसे आपके जिस्म से उखड़ जाएँगी।
‘आजकल लोगों को दूर रखने के लिए छोटे छोटे अपमान करता हूँ।’ मैं आपके अपमान करूँगा और आपका जिस्म इतने हिस्सों में टूट सकता है कि आपके जिस्म को छन्नी से छाना जा सके। पसंदीदा आदमी द्वारा किए गए अपमान से आपकी आँखो के परखच्चे उड़ सकते हैं। मेरी उदासी निश्चित वज़हों के जाल से मुक्त है। मेरा अलग आसमाँ है जिसमें उदासी के नए बादल बनते-बिगड़ते हैं। आपका सीना अभी इतना भारी नहीं है कि मेरे आसमाँ के बादलों का वज़न सह सके।
मैं ऐसा आदमी नहीं हूँ जिससे प्रेम किया जा सके। आपको मुझसे लगाव हो सकता है मगर प्रेम करने की हिमाक़त आप न करें तो बेहतर है।