मेहमान बनकर आए और दुश्मन बन गए ..
दरअसल देश तो है यह भारत वर्ष ,
आर्यन अर्थात हिंदुओं का ।
बाकी संप्रदाय तो यहां थे मेहमान बनकर आए,
जाने कुछ खोट था नियत का ।
मेहमान बनके आए और कब्जा जमा लिया ,
नाम न लिया वापिस फिर जाने का ।
कुछ तो वापिस चले भी गए ,
मगर उम्र भर का दाग देकर ,
और कुछ सब कुछ लूटकर ।
नाम भी बदलकर रख दिया हमारे देश का ।
भारत से इंडिया और फिर हिंदुस्तान बन गया ,
रिवाज बनाना पड़ा सांप्रदायिक सद्भावना का ।
मगर फिर भी यह तो एकतरफा ही पक्ष रहा न !
मेहमान से छोटे भाई बने ,मगर ,
सलीका / तहजीब कौन सिखाए भाईचारे और प्रेम का।
यह नहीं ! के आ ही गए है तो शराफत से रहे ।
क्या मजा आता है बेवजह धर्म के नाम पर लड़ने का?
वोह है सबका मालिक एक ,हम सब संताने उसकी ।
रहते मिलजुलकर जहां यह देश ,,
जिसे नाम दिया हमने परिवार का ।
एक ही परिवार की तरह मिलजुलकर क्यों नहीं रहते तुम सब ?
क्यों नाम बदनाम करते है अपने घर परिवार का ।