मेहमान जिन्दगी
***** मेहमान जिन्दगी ******
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कुछ लम्हों की मेहमान जिन्दगी
कर दो खुशियाँ कुरबान जिन्दगी
कोई भी ठहर नहीं पाया हैं
यूँ मत करो तुम गुमान जिन्दगी
अहं में क्यों इन्सान डूबता है
जल के बुलबुले समान जिन्दगी
हर्षित हो बसर करो हसीं लम्हें
चार दिन का है फरमान जिन्दगी
शीतल हवा का एक झौंका है
पल में गुजरे,दरमियान जिन्दगी
रिश्तों के आनन फानन में फंसी
बन जाती है दास्तान जिन्दगी
नफरतों से सदा ही दुरियाँ हों
अनुरक्ति भरी संज्ञान जिन्दगी
सुखविन्द्र उलझन में उलझा रहे
आशिक पर मेहरबान जिन्दगी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)