मेहनत का फल मीठा
राम गाँव से शहर में पढ़ाई करने आया था। पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी।राम कक्षा छः का विद्यार्थी था।राम के पिता ने पास के विद्यालय में दाखिला दिला दिया था।विद्यालय घर से चार किलोमीटर दूरी पर है।
राम पहले दिन विद्यालय गया ।सभी सहपाठियों को देख मन प्रसन्न था।परन्तु मन में गरीबी कचौंट रही थी…”सबके कंधे पर बाजार के बस्ते सजे थे राम के पास घर का सिला बस्ता था।” पर कोई बात नहीं।सब बच्चे अपनी-अपनी साइकिल से विद्यालय आते थे ।केवल राम ही पैदल विद्यालय आता था।
एक दो दिन बीते राम का मन थोड़ा उदास रहने लगा।
राम पुरानी गणवेश,गंदे से बूट पहनकर जाता था।सभी उसका मजाक बनाते।
यह देख “राम ने अपने सपनों को बिखरते देखा।” राम ने स्वयं को संभाला।विवेक से काम लिया।मेहनत और लगन के साथ गिद्ध सी नजरें अपने लक्ष्य पर ठिका आगे बढ़ने लगा।
राम का नीट परीक्षा में चुनाव हुआ।सरकारी काँलेज मिला ।
कुछ वर्षों बाद राम सरकारी अस्पताल में मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ का चिकित्सक बना।
आज राम के पास गाड़ी,घोड़ा बंगला ,नौकर चाकर सब है। आजकल के बच्चों घर से चौराहे तक पैदल नहीं जाते।
ऐश-ओ-आराम का जीवन व्यतीत करना चाहते है।मेहनत से मुँह मोड़ते है या अपनी तोहीन समझते हैं। उन्हें सफल मंजिल कदाचित नहीं मिलती”जो राम जैसे होते है सफलता के शिखर पर पहुँचते है।”