“मेहंदी”
“मेहंदी”
सखी रे आजा सावन आया रे,
राखी का त्यौहार जो आया ,
भाई बहन के मन को लुभाया।
हरी पीली लाल चूड़ियां खनके ,
गोरे गोरे हाथों में मेहंदी रचाया।
माथे की बेंदी चमचम चमके ,
हाथों की मेहंदी का रंग चमकाया।
मेहंदी का रंग कभी न छुटे ,
ओढ़ चुनरिया जब मन झूमे ,
मेहंदी रची जब मन भरमाया।
हिना की खुशबू लिए सोलह श्रृंगार ,
द्वार खड़े ताकती भैया को नैन भर आया।
मेहंदी का रंग चढ़ा हाथों में ,जैसे प्रेमबन्धन कलाईयों में भाया।
मेहंदी रंग दे जाती है ,न जाने क्यों इठलाती है।
मेहंदी रंग हिना की दे गई ,धुंधली हो गई अब मन को न भाया।
राखी का त्यौहार में न जाने क्यों ,ये कोरोना ने कहर बरपाया।
भाई बहन को जुदा करके ,महामारी का आंतक फैलाया।
पीहर की जब याद सताये ,मन पँछी बन उड़ उड़ जाए।
राखी का त्यौहार जो आया ,भाई बहन के मन को लुभाया
ओ री सखी कजरी तीज गाओ ,सावन मास बूंदों की बौछार लाया।
शशिकला व्यास ✍️
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