मेले
मेले में हर आदमी ,जाने क्या विश्वास।
सच्चाई को ढूंढता, टूटे हर पल आस।।
टूटे हर पल आस, छुपा कर फिर भी जीता।
आदत से मजबूर, दर्द को हर क्षण पीता।।
कहती अरुणा मीत , खेल जीवन मनु खेले।
भला बुरा पहचान, मने खुशियों के मेले।।
©®✍️ अरुणा डोगरा शर्मा