मेला
विषय- मेला !
विधा – मंदाक्रांता छंद!
विधान~ [{मगण भगण नगण तगण तगण+22}
( 222 211 111 221 221 22)
17 वर्ण, यति 4, 6,7 वर्णों पर, 4 चरण
[दो-दो चरण समतुकांत]
चिंगारी सी, प्रखर लपटे , काल पाषाण लेखो !
आँधी छाई , विकल रजनी , नैन नादान देखो !
यात्री मेला , जगत नगरी, त्याग विस्तार छोड़ो !
प्राणी माया, भ्रमित लगती ,नेह निर्लिप्त जोड़ो !!
संध्या आई , तम कण लदी , अंध अस्तित्व लाई !
मुग्धा देखो , मधु मुकुल सी , मौन माधुर्य पाई !
काया तेरी , तम तरुवर में ,काल कंकाल जैसी !
रातें सोई , तमस गहरी , नींद जंजाल कैसी !!
त्यागो तृष्णा, सुख दुख भरी , मूर्त जंजीर तोड़ो !
फैली ज्वाला , सतत चित में, रोग गम्भीर छोड़ो!
मैं की मेरी, गरल गगरी, रूप निस्तेज जानो !
रीते मेला ,अवयव जले ,स्वप्न संसार मानो !!
डाँ छगन लाल गर्ग विज्ञ !